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साहित्य में चित्रित वृद्धों के प्रवासी जीवन की त्रासदी - सीमा दास

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साहित्य में चित्रित वृद्धों के प्रवासी जीवन की त्रासदी  सीमा दास  संपर्क-7510211834 इमेल-seema9903617475@gmail.com व्यक्ति से परिवार और परिवार से समाज बनता है और इस परिवार को संरचनात्मक रूप प्रदान करने वाला व्यक्ति घर के बड़े बुजुर्ग ही हुआ करते हैं जिससे परिवार की उत्पत्ति हुई है | परिवार के बिना समाज की निरंतरता संभव नहीं है | वास्तव में परिवार का आधार  सुनिश्चित यौन संबंध है जो कि संतान उत्पन्न करनें से लेकर उनके पालन-पोषण तक अवस्थित रहता है | डॉ. सुखविंदर बाढ के अनुसार- “व्यक्ति सदैव ही परिवार का सदस्य रहता है और अनेक परिवारों के समूह से समाज बनता है | परिवार के लिए सबसे अति आवश्यक मूल बात है- पति-पत्नी द्वारा संतान की उत्पत्ति |”1 परन्तु वर्तमान समय में विद्माबना यह है कि जिस नींव की वजह से परिवार की संकल्पना की जाती है उसी से आज का युवा वर्ग हेय यानी नफ़रत करने लगा है | उनसे बात करने से कतराते हैं | यहाँ तक कि उन्हें अपना बोझ समझ कर या तो अपने से हमेसा के लिए अलग कर देते हैं या स्वयं ही बेगाना बनाकर अकेला छोड़कर निकल पड़ते हैं | जिसके परिणामस्व...

गिरमिटिया देशों में हिंदी साहित्य की दशा एवं दिशा और अभिमन्यु अनत का योगदान - सीमा दास

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गिरमिटिया देशों में हिंदी साहित्य की दशा एवं दिशा  और  अभिमन्यु अनत का योगदान                                                                                               सीमा दास दूरभाष संख्या-7510211834 ईमेल पता-seema.hindi@gmail.com  १९वीं शताब्दी के पुवार्द्ध में भारत से अधिकांश मजदूरों को मजदूरी करने के लिए मॉरिशस लाया गया | उनमें ज्यादातर गरीब परिवार के लोग थे | गौरतलब बात यह है कि अनुबंध पर जाने वाले अनपढ़ लोग अपने को गिरमिटिया कहने लगे | इन गरीब मजदूरों के बीच उनकी लोक-संस्कृति रची-बसी थी, जिसका स्पष्ट स्वरूप को इस प्रकार जाना जा सकता है- जब वे धान काटते, रोपाई करते, दाना निकाल कर दौनी करते हुए इत्यादि | अर्थात् उन गरीब भारतीय मज़दूरों की लोक भाषा भोजपुरी हुआ करती, जबकि पढ़े-लिखे लोग बोलचाल की भाषा के रूप में खड़ीबोली ...